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Sunday, December 12, 2010

जागो दिल्ली इससे पहले कि रात हो जाये !

नई दिल्ली। दिलवालों के शहर दिल्ली को शायद किसी की नजर लग गयी है तभी तो अब यंहा शांति और सौहार्द के बदले जुर्म और अत्याचार ने ले लिया है। जहाँ प्यार और बलिदान की भावना थी वहीं आज लालच और हवस के पुजारी नजर आते हैं। अभी कुछ ही दिनों पहले पश्चिमी दिल्ली में जब एक कालसेंटर में कामकरने वाली 30 वर्षीय महिला की अस्मत लुटी गयी तो दिल्ली सरकार ने पुलिस को रात्रिपहर कार्यरत किसी भी महिला को एक काल पर उसके घर निशुल्क सुरक्षित पहुचाने की जिम्मेवारी सौपी। गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस ने धौलाकुआं सामूहिक दुष्कर्म मामले की गुत्थी सुलझाकर अभी चैन की सांस भी नहीं ले पाई थी कि  एक और सामूहिक दुष्कर्म के मामले ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को बदनाम कर दिया। सुल्तानपुरी इलाके में शनिवार को एक लडकी का अपहरण करके उसके साथ चलती कार में सामूहिक दुष्कर्म किया गया।
हलाकि, बलात्कार के आरोप में पुलिस ने चार अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है। आरोपियों की उम्र 17 से 30 साल के बीच है। सूत्रों के अनुसार कार से अश्लील सीडी और शराब की बोतलें बरामद की गई। लडकी की मेडीकल जांच में बलात्कार की पुष्टि हो गई है। शनिवार रात साढे 11 बजे जब ये लडकी रोज की तरह अपनी फैक्ट्री से घर के लिए निकली, तो एक काले रंग की एसेंट कार में चार लडकों ने उसे अगवा कर बलात्कार किया।
अब सवाल यह उठता है कि देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जब हमारे माँ-बहनों के लिए सुरक्षित नहीं है तो हम किस बात पर खुद को गौरवांवित महसूस करते हैं ? हम पाश्चात्य सभ्यता को हर दिन खरी खोटी सुनते है और सीना ठोककर कहते हैं कि हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति सर्वोपरि है। हम सबसे अच्छे है। हम सबसे पवित्र है। जब हमारी आबरू का ही हर दिन चीर-हरण होगा तो कैसी सभ्यता कैसी संस्कृति जिस पर हमे गर्व हो। हम तो उन अपाहिजों से भी गए हैं जो कम से कम अपनी शारीरिक छमता से लचर है। भगवान ने या परिस्थिति ने उन्हें शारीरिक रूप से लचर बनाया है पर हम तो मानसिक रूप से लाचार है। हमारे दिमाग में हवस नाम का कोढ़ है। नहीं तो हर दिन हमें ऐसी घटनाये सुनने को नहीं मिलती। दोस्तों मै यह सब सिर्फ वाह-वाही के लिए नहीं लिख रहा। मै यह चाहता हूँ कि जितने लोग मेरे विचारों को पढ़ें वो संकल्प ले कि यदि आज के बाद कोई नभी असामाजिक तत्व यदि हमारी माँ-बहनों, बहु-बेटियों या फिर दोस्तों या किसी अनजान महिला की ही आबरू पर हाथ डाले तो वो हाथ किसी और कम को करने लायक न बचे। लोग कह सकते हैं कि मै बहुत मुखर हूँ या जवानी के जोश में कुछ भीं बक रहा हूँ। यकीन मानिये यदि हुने पहल न की तो ये हवस के पुजारी काल हमारी और परसों आपकी अस्मत को तार-तार करने से नहीं चुकेंगे। जय हिंद जय भारत !

Saturday, November 27, 2010

पेड़ों में न छांव है उजर गए सब गाँव है