जय माँ शारदे ! |
वसंत में खिलखिलाते फूल |
यदि आध्यात्मिक पहलु से देखा जाये तो बसंत पंचमी अर्थात आज हीं के दिन ब्रम्हाजी के मुख से मां सरस्वती का आविर्भाव हुआ था और लोगों को बोलने की शक्ति मिली थी। इसलिए बसंत पंचमी को विद्या जयंती भी कहा जाता है और इस दिन सरस्वती पूजा का विधान है। इस दिन अभिभावक अपने बच्चों को मंदिर में लेकर आते हैं और बच्चों से किताबों की पूजा के साथ ही लेखनी प्रारंभ करवाते हैं। माना जाता है कि इससे बच्चों में ज्ञान की ज्योत जलती है और बच्चा पढने में तेज होता है। इसके आगमन से सबके मन व शरीर में नई शक्ति व ऊर्जा की अनुभूति होती है।
बसंत पंचमी को युवाओं के विवाह बंधन में बंधने के लिए भी शुभ माना जाता है। इस अवसर पर भारत के कई प्राचीन मंदिरों में एक साथ कई युगलों को विवाह बंधन में बांधने की व्यवस्था की जाती है।
बसंत पंचमी से फाग की शुरूआत भी होती है। इस अवसर पर ठाकुर स्वरूपों को अबीर गुलाल से होली खिलाई जाती है। यह क्रम होली तक चलता है।
स्वरूप
माँ सरस्वती के मुस्कान से उल्लास का, दो हाथों में वीणा-भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक होता है । पुस्तक से ज्ञान और माला से ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है । वाहन मयूर-सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है। इनका वाहन हंस माना जाता है जो कि सफ़ेद रंग के होने के कारण सरलता और शांति का प्रतीक होता है। इनके हाथों में वीणा, वेद और माला कला और साहित्य का बोध कराती है। सिर्फ हिन्दू ही नहीं मुसलमान और अन्य धर्मों के लोग भी बुद्धी और ज्ञान के लिए माँ शारदा की आराधना करते हैं।सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला| या शुभ्रवस्तावृता|
या वीणावरदंडमंडितकरा| या श्वेतपद्मासना||
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभितिभिर्देवैःसदावंदिता|
सामांपातु सरस्वतीभगवती निःशेषजाड्यापहा||
विद्या, संगीत, कला | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
देवनागरी | सरस्वती, शारदा, वीणावादिनी | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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सहबद्धता | हिन्दू देवी | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
आवास | सत्यलोक | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मंत्र | ॐ एं सरस्वत्यै नमः | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
शस्त्र | वीणा, जपमाला | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पति/पत्नि | ब्रह्मा | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
वाहन | हंस, मोर |
मनःशास्त्र के रहस्यों को जानने वाले स्वीकार करते हैं कि व्यायाम, अध्ययन, कला, अभ्यास की तरह साधना भी एक समर्थ प्रक्रिया है, जो चेतना क्षेत्र की अनेकानेक रहस्यमयी क्षमताओं को उभारने तथा बढ़ाने में पूणर्तया समर्थ है । सरस्वती उपासना के संबंध में भी यही बात है । उसे शास्त्रीय विधि से किया जाय तो वह अन्य मानसिक उपचारों की तुलना में बौद्धिक क्षमता विकसित करने में कम नहीं, अधिक ही सफल होती है ।
इस अवसर पर प्रसिद्ध कवि चिराग जैन जी की चार पंक्तियाँ माँ के चरणों में समर्पित करना चाहूँगा :
हम सरिता सम बन जाएँ,
कविता-सरगम-ताल-राग के सागर में खो जाएँ।
सात सुरों के रंगमहल में साधक बनकर घूमें
नयनों से मलहार बहे माँ, दादर पर मन झूमे
भोर भैरवी संग बिताएँ, सांझहु दीपक गाएँ
हम सरिता सम बन जाएँ।
नयनों से मलहार बहे माँ, दादर पर मन झूमे
भोर भैरवी संग बिताएँ, सांझहु दीपक गाएँ
हम सरिता सम बन जाएँ।
हे वीणा की धरिणी, हमको वीणामयी बना दो
ज्ञानरूपिणी मेरे मन में ज्ञान की ज्योत जगा दो।
कण्ठासन पर आन विराजो इतना ही वर चाहें
हम सरिता सम बन जाएँ !
ज्ञानरूपिणी मेरे मन में ज्ञान की ज्योत जगा दो।
कण्ठासन पर आन विराजो इतना ही वर चाहें
हम सरिता सम बन जाएँ !
जय माँ शारदे !
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