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देश की तकदीर लिखने को तहरीर चौक पर जुटा सिपाही |
अपनी प्राचीन सभ्यता के लिए मशहूर तथा अनोखे पिरामिडों के कारण विश्व के सात अजूबों में अपना नाम दर्ज करने वाले मिस्र में इन दिनों कहर बरपा हुआ है, सड़को पर विरोध प्रदर्शन हो रहे है, सारा देश एक जुट हो कर अपनी तकदीर, अपने मुकद्दर और अपनी तहरीर, अपनी आजादी को खुद तय करने पर आमादा है। मिस्र की जनता ने 30 साल से चले आ रहे तानाशाही सरकार को उखार फेंकने की जो कोशिश की है वह विश्व पटल पर लोकतंत्र की जीत के रूप में देखा जा सकता है। मिस्र की जंगे-आजादी ने न सिर्फ मिस्र के पड़ोसी देशों बल्कि पृथ्वी पर अन्य तानाशाही सत्ता से ग्रसित देशों की जनता को भी सर उठा कर जीने तथा भ्रष्ट सरकार के खिलाफ विरोध का बिगुल बजाने को प्रेरित किया है।
मिस्र के हालातों का असर, बहुत सारे देशों में तो दिखने भी लगा है, इनमें जो पहला नाम आता है वह है यमन। समाचार एजेंसी डीपीए के अनुसार पिछले दिनों करीब 20 हजार सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आये। उन्होंने शहर के बाब अल यमन इलाके से लेकर तहरीर चौक (यमन में) तक रैली निकली तथा सरकार विरोधी नारे लगाये। गौरतलब है कि मिस्र के जलजले ने यमन में भी आग लगा दी है राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह की नींदें उड़ गयी है। 1978 से यमन के राष्ट्रपति की कुर्सी पर विराजमान अब्दुल्ला सालेह की गद्दी अब खतरे में नजर आ रही है। हलाकि मौके की नजाकत को देखते हुए 2 फरवरी, 2011 को सालेह ने ऐलान किया कि वह वर्ष 2013 में होने वाले आम चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे। साथ हीं उन्होंने अपने बेटे को सत्ता की बागडोर नहीं सौपने की घोषणा की। सालेह के इन घोषणाओं पर जनता कितना विश्वास करती है यह देखना भी
दिलचस्प होगा। यमन के अलावा जिन देशों में सत्ता के खिलाफ जंग की सुगबुगाहट हो रही है उनमें जार्डन और कज्किस्तान प्रमुख हैं। मिस्र में यदि लोकतंत्र की जीत होती है जो कि जानकारों के अनुसार लगभग तय है तो फिर शर्तिया तौर पर विश्व के हरेक तानाशाही सरकार की विदाई तय हो जाएगी।
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दिल में सुलगती चिंगारी आग नहीं बल्कि ज्वाला मुखी बन कर फटती है |
अब तक मिस्र की जनता ने अपने 300 से ज्यादा भाई-बहनों और बच्चों की आहुति दी है 2003 में भी हुस्नी मुबारक के खिलाफ दंगे भड़के थे लेकिन मुबारक ने बड़े ही चालाकी से उस चिंगारी को आग बनने से रोक दिया। मगर मुबारक यह भूल गए की चिंगारी अगर बहार जली हो तो बुझाई जा सकती है पर दिल में सुलगती चिंगारी आग नहीं बल्कि ज्वाला मुखी बन कर फटती है। और इस बार यह ज्वालामुखी तो एक प्रदेश में नहीं सारे देश में एक साथ भूकंप ले कर आई है। 2003 में न तो मिस्र की जनता एकजुट थी और न हीं विरोधी पार्टियाँ। किन्तु इस बार का मंजर बिलकुल अलग है, विरोधी पार्टियाँ अपनी निजी लाभ-हानि को भूल कर राष्ट्र तथा राष्ट्र की जनता के हक में लड़ते नजर आ रहे हैं। सेना के आला अधिकारी भी जनता के साथ हैं और उन्होंने आम जनता के विरुद्ध कोई भी गलत कदम उठाने से साफ़ इंकार कर दिया है। जंगे-आजादी के रणवीरों ने भी सेना को अपना भाई मन है इस हिसाब से अब वो दिन दूर नहीं जब राष्ट्रपति अपनी गद्दी छोड़ देश से बाहर का रास्ता देखते हुए नजर आयेंगे। मुबारक के बेटे गमल ने यह कदम पहले हीं उठा लिया था। माना यह जा रहा है कि मुबारक के उतराधिकारी पहले ही देश छोड़कर भाग खड़े हुए और इस समय लंदन में छिप कर रह रहे है।
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इतिहास से भविष्य तक का सफ़र |
मिस्र की जनता को इस अवसर पर बधाई देते हुए और बाकी राष्ट्र को उनसे सबक लेने की सलाह देते हुए यही कहूँगा : "खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा खुद बन्दे से पूछे बता तेरी रजा क्या है ?"
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